आशाओं के दिये से, लिखती गई कविता, ह्र्दय पर छपता, अधरों पर खिलता, आशाओं के दिये से, लिखती गई कविता, ह्र्दय पर छपता, अधरों पर खिलता,
सुर्खियों में दिख रहा हो दूर से पास आता हुआ तुम्हारा प्रतिबिंब। सुर्खियों में दिख रहा हो दूर से पास आता हुआ तुम्हारा प्रतिबिंब।
तो जाति, धर्म कहाँ से आया ? वैसे ही आँसू का कोई धर्म नहीं। तो जाति, धर्म कहाँ से आया ? वैसे ही आँसू का कोई धर्म नहीं।
मत आना फिर से तुम, कैसे कह दूँ इनसे, अतिथि देवो भव...! मत आना फिर से तुम, कैसे कह दूँ इनसे, अतिथि देवो भव...!
चले जायेंगे जब हम कभी वापस न आने को, चले जायेंगे जब हम कभी वापस न आने को,
ख्यालों में किसी और को हम ला न सके, ख्यालों में किसी और को हम ला न सके,